जाति के चश्मे से
देखोगे अगर तुम
आदमी को,
तो आदमियत से
दूर होते जाओगे !
विकास के नाम पर
चाहे अनचाहे ही
एक जंगल राज
खड़ा कर जाओगे!
बेशक पछताओगे!
खुद को कभी-कभी
मकड़जाल में जकड़ी
एक मकड़ी सरीखा
तुम खुद को पाओगे ।
अपनी नियति को कैद महसूस कर ,
तुम मतवातर अपनी भीतर ,
घुटन महसूस कर,तिलमिलाए देखे जाओगे।
तुम कब इस दुष्चक्र से
बाहर निकल कर आओगे?
ठीक है ,जाति तुम्हारी पहचान है।
कोई तुम्हें जाति में विचरने से नहीं रोकता ।
बेशक जाति पहचान रही है ,
परंपरावादी व्यवस्था की ।
आज जरूरत है ,
इस व्यवस्था में स्वच्छता लाने की ,
इसके गुणों व अच्छाइयों को, दिल से अपनाने की ।
यदि जाति के चश्मे से ना देखोगे आदमी को ।
सदैव साफ रखोगे नीयत तुम अपनी को ,
तो जाति तुम्हारी पहचान बनेगी ।
यह कभी विकास में बाधक न बनेगी ।
०८/०२/२०१७