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हमें
जो संस्कार मिले हैं,
वे हमें सच से जोड़ते हैं,
झूठ से मुख मोड़ना बतलाते हैं।

हम
सच बोलने के आदी हैं
ना कि
ज़ुल्म ओ सितम के आगे
घुटने टेकने वाले
नैतिकता के अपराधी हैं।


हम तो बस फरियादी हैं।
जीवन के रस से पले बढ़े हैं!
जीवन संघर्षों में सीना तान खड़े हैं!!

हमें जो संस्कार मिले हैं,
उनसे हमें जीवनाधार मिला है।
इन संस्कारों ने हमें निर्मित किया है ,
और बतौर उपहार , हमारा व्यक्तित्व गढ़ा है।
  १४/०५/२०२०.
जब से
मैं भूल गया हूं
अपना मूल,
चुभ रहे हैं मुझे शूल ।

गिर रही है
मुझे पर
मतवातर
समय की धूल ।

अब
यौवन बीत चुका है,
भीतर से सब रीत गया है,
हाय ! यह जीवन बीत चला है,
लगता मैंने निज को छला है।
मित्र,
अब मैं सतत्
पछताता हूं,
कभी कभी तो
दिल बेचैन हो जाता है,
रह रह कर पिछली भूलों को
याद किया करता हूं,
खुद से लड़ा करता हूं।

अब हूं मैं एक बीमार भर ,
ढूंढ़ो बस एक तीमारदार,  
जो मुझे ढाढस देकर सुला दे!!
दुःख दर्द भरे अहसास भुला दे!!
या फिर मेरी जड़ता मिटा दे!!
भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति जगा दे।!

८/५/२०२०.
दोस्त!
अपने भीतर की
नफ़रत का नाश कर,  
उल्फत के जज़्बात
अपने भीतर भरा कर ,
अपनी वासना से न डरा कर,
देशऔर दुनिया के सपनों को,
सतत् मेहनत और लगन से
साकार किया कर ।


ऐसा कुछ कहती हैं,
देश के अंदर
और
सरहद पार
रहने वाले बाशिंदों के
दिलों  से निकली
सदा।
समय पाकर
जो बनतीं जातीं
अवाम की दुआएं।
ऐसा
हमने समझ लिया है
इस दुनिया में रहकर,
समय की हवाओं के
संग बहकर।

फिर क्यों न हम
अपने और परायों को
कुछ जोश भरे,कुछ होश भरे
रास्तों पर
आगे बढ़ना सिखलाएं ,
उन्हें मंज़िल तक लेकर जाएं ।

९/५/२०२०.
दीन ओ धर्म के नाम पर
जब अवाम को
बरगलाया जाता है,
तब क्या ईश्वर को
भुलाया नहीं जाता है?

दीन ओ धर्म
तब तक बचा रहेगा ,
जब तक आदमी का किरदार
सच्चा बना रहेगा ।

दीन ओ धर्म
तभी तक असरकारी है,
जब तक आदमी की
आंखों में
शर्म ओ हया के
जज़्बात जिंदा रहते हैं,
अन्यथा लोग हेराफेरी,
चोरी सीनाज़ोरी में
संलिप्त रहते हैं,
अंहकारी बने रहते हैं,
जो धर्म और कर्म को
दिखावा ही नहीं,
बल्कि छलावा तक मानते हैं।
ऐसे लोग
धर्म की रक्षा के नाम पर
देश, समाज, दुनिया को बांटते हैं,
नफ़रत फैला कर
अपनी दुकान चलाते हैं,
भोले भाले और भले आदमी
उनके झांसे में आकर
बेमौत मारे जाते हैं।
मर्यादा
माया से डरें नहीं
बल्कि
वह अपनी सीमा से बंधी रहे।
कुछ ऐसा
तुम पार्थ करो,
सार्थक जीवन के लिए
जन जन के
प्रेरक बनो ।
कहे है इतिहास सभी से
कृष्ण सा चेतना पुंज बनो।
जीवन युद्ध के संघर्षों में  
शत्रुहंता होने के निमित्त
धनुष पर राम बाण से होकर तनो ।
जीवन के वर्चस्व को  
राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत की तरह चुनो।
आधी दुनिया
भूखी सोती है।
सोचता हूं,
क्या कभी लोग
भूखी नंगी
गुरबत से
जूझ रही दुनिया की
बाबत फ़िक्र करते हैं?

मुझे
थाली में जूठन
छोड़ने वाले अच्छे नहीं लगते।
मुझे
वे लोग
नफरत के लायक़
लगते हैं।
दुनिया खाने का
सलीका
सीख ले,
यही काफ़ी है।
हे अन्न देवता!
कोई जूठन छोड़ कर
आप का अपमान न करें।
यही मेरी हसरत है।
कोई भी खाना बर्बाद  होने न दे,
तो देशभर में बरकत होगी।
यही मानवता के लिए
बेहतर है।
भूखे को अन्न मिल जाए।
उसके प्राण बच जाए,
इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता
क्यों कि
आदमी का जमीर
कभी मर नहीं सकता।
यदि
मूल्य अवमूल्यन के दौर में
आदमी अपने आदर्श ढंग से अपना पाए
तो क्यों न  
सब उसे
सराहना का पात्र मान लें।
वेदों, गीता, रामायण, महाभारत की
सृजन स्थली
भारतवर्ष
अब
आज के भागम भाग वाले
काल खंड में
महाभारत का स्वरूप भर
प्रतीत होता है।
हर कहीं छोटे बड़े
खंडित स्वरूपों में महाभारत
देश
और दुनिया में मंचित की
जा रही है।
लगता है महाभारत का युद्ध
अभी तक
जारी है।
यहां वहां चारों ओर
अंधकार फैला हुआ है।
छल प्रपंच के मध्य
यहां हर कोई
एक दूसरे को मार रहा है।
यहां हर कोई धीमी मौत मर रहा है।
अर्जुन सरीखा,जो लड़ने में सक्षम है,
जीवन की युद्धभूमि से भाग रहा है।
यहां हर कोई पार्थ की प्रतीक्षा कर रहा है।
इस सब के बावजूद
हर कोई अपना अपना युद्ध लड़ रहा है।
१५/११/२०२४.
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