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Joginder Singh Nov 2024
गर्मी में ठंड का अहसास
और
ठंड में गर्मी का अहसास
सुखद होता है,
जीवन में विपर्यय
सदैव आनंददायक होता है।

ठीक
कभी कभी
गर्मी में तेज गर्मी का अहसास
भीतर तक को जला देता है,
यह किसी हद तक
आदमी को रुला देता है।
देता है पहले उमस,
फिर पसीने पसीने होने का अहसास,
जिंदगी एकदम बेकार लगती है,
सब कुछ छोड़ भाग जाने की बातें
दिमाग में न चाहकर भी कर जातीं हैं घर,
आदमी पलायन
करना चाहता है,
यह कहां आसानी से हो पाता है,
वह निरंतर दुविधा में रहता है।
कुछ ऐसे ही
ठंड में ठंडक का अहसास
भीतर की समस्त ऊष्मा और ऊर्जा सोख
आदमी को कठोर और निर्दय बना देता है,
इस अवस्था में भी
आदमी
घर परिवार से पलायन करना चाहता है,
वह अकेला और दुखी रहता है,
मन में अशांति के आगमन को देख
धुर अंदर तक भयभीत रहता है।
उसका यह अहसास कैसे बदले?
आओ, हम करें इस के लिए प्रयास।
संशोधन, सहिष्णुता,साहस,नैतिकता,सकारात्मकता से
आदमी के भीतर बदलते मौसमों को
विकास और संतुलित जीवन दृष्टि के अनुकूल बनाएं।
क्यों उसे बार बार थका कर
जीवन में पलायनवादी बनाएं?

ठंड में गर्मी का अहसास,
गर्मी में ठंड का अहसास,
भरता है जीवों के भीतर सुख।
इसके विपरीत घटित होने पर
मन के भीतर दुःख उपजता है ।
यह सब उमर घटाता है,
इसका अहसास आदमी को
बहुत बाद में होता है।
सोचता है रह रह कर, भावों में बह बह कर
कि अब पछताए क्या होत ,जब चिड़िया चुग गईं खेत।
Joginder Singh Nov 2024
आज देश में
संविधान बचाने के
मुद्दे पर
नेता प्रति पक्ष
और सत्ताधीन नेतृत्व के बीच
एक होड़ा  होड़ी लगी हुई है।
दोनों , संविधान खतरे में है, कहते हैं,
असंख्य लोग अन्याय, शोषण के दंश को सहते हैं।
नेता प्रति पक्ष का कहना है,
सत्ता पक्ष ने
संविधान पढ़ा नहीं, सो वो
संविधान को खोखला बता रहे।
' अगर संविधान पढ़ा होता,
तो उन्होंने अलग नीतियां अपनाईं होतीं।'
सत्ता पक्ष ने भी  
नेता प्रति पक्ष के ऊपर
आरोप लगाया कि
विपक्ष
देश के एक संवेदनशील राज्य में
एक अलग संविधान बनाने की योजना पर
अड़ा हुआ है।
आप ही बताइए
एक देश,एक संविधान,
होना चाहिए कि नहीं।
आप ही फ़ैसला कीजिए,
कौन है सही।
देश में संविधान को लेकर
बहस छेड़ने का मुद्दा गर्म है।
हर कोई बना देश में बेशर्म है।
सब के अपने अपने पाले हैं।
क्या नेतागण
नागरिकों को मूर्ख बना रहे हैं?
आज
देश में संविधान सर्वोपरि रहना चाहिए।
यह देश की अस्मिता का वाहक होना चाहिए।
संविधान को लेकर
पड़ोसी देश में भी विवाद चल रहा है।
यहां वहां,सब जगह
संविधान को विवादित किया जा रहा है।
संविधान से धर्मनिरपेक्ष, समाजवाद, जैसे
अप्रासंगिक हो चुके मुद्दों को
एक परिवर्तनकारी आंदोलन का
आधार बनाया जा रहा है।  
बहुत से देश उलझे हैं, उनके  सुलझाव के लिए
संविधान जरूरी है कि नहीं?
यह देश की तकदीर,दशा, दिशा निर्मित करता है।
इस सच को
देश दुनिया के
समस्त नेताओं को समझना चाहिए,
अपने दुराग्रह, पूर्वाग्रह छोड़ने चाहिएं।
विकास के मौके देश दुनिया में बढ़ने चाहिएं ।
१५/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
कभी
देश में फैला था
एक दंगा।
अर्से बाद हुआ
खुलासा ,
जिससे
नेतृत्व हुआ
नंगा।
सोचता हूँ,
अब
क्या होगा?
नेतृत्व
खुद को
बचा पाएगा
या कुछ
अप्रत्याशित
घट जाएगा।
क्या
समाज
जातियों में
बंट जाएगा?
३/६/२०२०
Joginder Singh Nov 2024
सुना है,
स्पर्श की भी
अपनी एक स्मृति होती है
जो अवचेतन का हिस्सा बन जाती है।
यदि
दिव्य की अनुभूति
करना चाहते हो तो प्रार्थना करो
पांच तत्वों के सुमेल के लिए !
भीतर के उजास के लिए !
दिव्यता के प्रकाश के लिए!
इस के लिए
संभावना खोजने के प्रयास करो।
हो सके तो दुर्भावना से बचो।
दिव्यता से साक्षात्कार कर पाने के लिए।
वैसे...
धरा पर भटकाव बहुत हैं
पर सब निरर्थक
सार्थक है तो केवल
नैतिकता,
जिस पर हावी होना चाहती अनैतिकता।


दिव्यता का संस्पर्श
हमें साहसी बनाता है।

अन्यथा हम पीड़ित बने रहेंगे।
इस बाबत आप क्या कहेंगे?
Joginder Singh Nov 2024
I am worried to see the climatic change.
It is beyond my range.
The whole world 🌎 seems me
like a chess board where
ups and downs related to 🌡️☁️🌡️☁️ weather change
is  disturbing to all of us.

Where all human beings,are playing the role of puppets.
Because nowadays
they have lost control over their destiny.
I am in a deep state of worries
from where I can see the finishing point of my planet 's life.
Who will cry 😢 with me to express sorrows for our beautiful mother Earth 🌍🌎🌍🌎!
Climatic changes made us like disturbed helpless souls wandering
here  and there on Earth.
Joginder Singh Nov 2024
जीवन की
शतरंज में मोहरे
रणनैतिक योद्धे हैं;
केवल
ऊँट,घोड़े,हाथी,
सिपाही,
वज़ीर, बेग़म, बादशाह नहीं।
वे यथार्थ में
जीवन धारा को
दिशा देना चाहते हैं,
अपने मालिक की रक्षा करना चाहते हैं ।
इस के लिए
अपना बलिदान भी देते हैं।
यथा सामर्थ्य
अपनी जिंदगी जीते हैं,
एक एक करके जीवन रण से
विदा होते हैं।

कभी कभी मोहरे सोचते हैं,
सोचते भर हैं, कुछ कहते नहीं।
वे तो मोहरे हैं,
उन्हें तो जीवन की बिसात पर
चलाया भर जाता है,
आगे,पीछे,दाएं,बाएं,
इधर उधर ले जाया और
सरकाया जाता है।
वे नियमों में बंध कर
अपनी भूमिका निभाते हैं।
बादशाह को बचाना उनका फ़र्ज़ होता है,
प्यादे से लेकर वज़ीर,बेगम सभी बादशाह को
जिंदा रखने की कोशिश करते हैं।
मोहरे तो बस
अपने प्राण न्योछावर करते हैं।
उनके वश में कुछ नहीं,
मालिक की मर्ज़ी ही उनके लिए सही।
वे मालिक की इच्छा को
अपनी इच्छा मानते हैं
क्योंकि वे केवल मोहरे हैं,
मोह से वे बचते हैं,
मरकर  ही वे मोक्ष पा जाते हैं।
इनका जीवन काल कुछ क्षण का होता है,
जब तक खेल जारी रहता है, वे हैं,वरना डिब्बे में कैद!!

जीवन में खेल खेला,
कुछ पल के लिए उतार चढ़ाव,
झंझट,झमेला, मोहरों ने झेला!
और खेल खत्म के साथ ही रीत गए!
समय यात्रा पूरी कर रीत, बीत गए!
दो खिलाड़ी मनोरंजन के लिए खेले।
कभी जीते,कभी हारे,कभी हार न जीत ।

मोहरे तो बस अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं।
लोग बेवजह शतरंजी चालें चल,
एक दूसरे को निर्वसन करते हैं।

मोहरे इंसानों की तरह
स्वतंत्र सोच नहीं रखते ।
वे तो मोहरे हैं,
वे उसी के हैं,
जिसकी बिसात में वे बिछे हैं।
खिलाड़ी बदला नहीं कि
वे छिछोरे  हो जाते हैं,
वे उसका कहना मानते हैं,
जिसके वे अधीन होते हैं,
एकदम मोह विहीन! निर्मोही!!
  ०९/०५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
मन का मीत करता रहता मुझे आगाह।
तू अनाप शनाप खर्च न किया कर।
कठिन समय है,कुछ बचत किया कर।
खुदगर्ज़ी छिपाने की मंशा से दान देता है,
बिना वज़ह धन को लुटाने से बचा कर।
मन का मीत करता रहता मुझे आगाह।
मत बन बेपरवाह, मितव्ययिता अपना,
अनाप शनाप खर्च से जीवन होता तबाह।
धोखा खाने, पछताने से अपना आप बचा।
देख, कहीं यह जीवन बन न जाए एक सज़ा।।
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