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Joginder Singh Nov 2024
वक़्त से पहले
गुनाहगार
कब जागते हैं?
वे तो निरंतर
जुर्म करने,
मुजरिम बनने की खातिर
दिन रात शातिर बने से भागते हैं।

वक़्त आने पर
वे सुधरते हैं,
नेक राह पर
चलने की खातिर
पल पल तड़पते हैं!

कभी कभी
अपने गुनाहों के साए से
लड़ते हैं,
अकेले में सिसकते हैं।

पर वक़्त
उनकी ज़बान पर
ताला जड़
उन्हें गूंगे बनाए रखता है।
सच सुनने की ताकत से
मरहूम रखकर
उन्हें बहरा करता है।

वक़्त आने पर,
सच है...
वे भीतर तक
खुद को
बदल पाते हैं

अक्सर
वे स्वयं को
अविश्वास से
घिरा पाते हैं।
वे पल पल पछताते हैं,
वे दिन रात एक कर के
पाक दामन शख़्स ढूंढते हैं,
जो उन्हें  मुआफ़ करवा सके,
दिल के चिरागों को
रोशन कर सकें,
जीवन के सफ़र में
साथ साथ चल सकें।
आखिरकार
खुद और खुदा पर यक़ीन करना
उनके भीतर आत्मविश्ववास भरता है
जो क़यामत तक  
उनके भीतर जीवन ऊर्जा
बनाए रखता है,
उन्हें जिंदा रखता है,
ताकि वे जी भर कर पछता सकें!
वे खुद को कुंदन बना सकें !!

२१/०४/२००९
Joginder Singh Nov 2024
सन २०२३और २०२४ के दौर में राजनीति
नित्य नूतन खेल ,खेल रही है।  
मेरे शब्दकोश में एक नया शब्द " खेला" शामिल हुआ है। समसामयिक परिदृश्य में राजनीति करने वाले सभी दल
उठा पटक के खेल में मशगूल हैं।
सन २००५ में
लिखे शब्द उद्धृत कर रहा हूँ....,
"इन दिनों
एक अजब खेल खेलता हूँ...
जिन्हें/ मैं/दिल से/चाहता नहीं ,
उनके संग/सुबह और शाम
जिंदगी की गाड़ी ठेलता हूँ!
अपनी बाट मेल ता हूँ।"

आप ही बतलाइए
२००५ से लेकर २०२४ में क्या परिवर्तन हुआ है ?
या बस / व्यक्ति,परिवार,समाज और राजनीति में/
नर्तन ही हुआ है ।
उम्मीद है ,यह सब ज़ारी रहने वाला है।
याद रखें,अच्छा समय आने वाला है।
Joginder Singh Nov 2024
वो अब इतना अच्छा लिखेगा,
कभी सोचा न था।
अब लिख ही लिया है
उसने अच्छा
तो क्यों न उसकी बड़ाई करें!
क्यों क्षुद्रता दिखा कर
उससे शत्रुता मोल लें ?
वो अब इतना अच्छा है कि पूछो मत
हम सब उसके पुरुषार्थ से सौ फ़ीसदी सहमत।
सुनिए,उसका सुनियोजित तौर तरीका और सच ।

अब उसने अपने वजूद को
उनकी झोली में डाल दिया है ।
आतंक भरे दौर में
वे अपने भीतर के डर ,
उसकी जेब में भर
उसे खूब फूला रहें हैं,
उसके अहम के गुब्बारे को
फोड़ने की हद तक ।

पता नहीं!
वो कब फटने वाला है?
वैसे उसके भीतर गुस्सा भर दिया गया है।
वो अब इतना बढ़िया लिखता है,
लगता , सत्ताधीशों पर फब्तियां कसता है।
पता नहीं कब, उसे इंसान से चारा बना दिया जाएगा।
Joginder Singh Nov 2024
कैसी
नासमझी भरी
सियासत है यह।
भीड़ भरी
दुनिया के अंदर तक
जन साधारण को
महंगाई से भीतर ही भीतर
त्रस्त कर
भयभीत करो
इस हद तक कि
जिंदगी लगने लगे
एक हिरासत भर।


कैसी
नासमझी भरी
हकीकत है यह कि
विकास के साथ साथ
महंगाई का आना
निहायत जरूरी है।

कैसी
शतरंज के बिसात पर
अपना वजूद
जिंदा रखने की कश्मकश के
दौर में
नेता और अफसरशाही की
मूक सहमति से
गण तंत्र दिवस के अवसर पर
बस किराया
यकायक बढ़ा दिया जाता है।
आम आदमी को लगता है कि
उसकी आज़ादी को काबू में करने के लिए
उसकी आर्थिकता पर
अधिभार लगा दिया गया है।

शर्म ओ हया के पर्दे
सत्ता की दुल्हनिया सरीखे
झट से गिराने को तत्पर
नेतृत्व शक्तियां!
किश्तीनुमा टोपियां!!
धूमिल और उज्ज्वल पगडंडियां!!!
कुछ तो शर्म करो।
गणतंत्र के मौके पर
मंहगाई का तोहफ़ा तो न दो।
तोहफ़ा देना ही है
तो एक दिन आगे पीछे कर के दे दो!
ताकि टीस ज़्यादा तीव्र महसूस न हो।
महसूस करना,
शिद्दत से महसूस कराना,
एक अजब तोहफ़ा नहीं तो क्या है?
यहां सियासत के आगे सब सियाह है, स्वाह है जी!
Joginder Singh Nov 2024
रिश्ते पाकीज़गी के जज़्बात हैं,इनका इस्तेमाल न कर।
पहले दिल से रिश्ता तोड़,फिर ही कोई गुनाह कर ।।
रिश्ते समझो, तो ही,ये जिंदगी में रंग भरते हैं।
ये लफ़्फ़ाज़ी से नहीं बनते,नादान,तू खुद कोआगाह कर।।
दोस्तों ओ दुश्मनों की भीड़ में, खोया न रहे तेरा वजूद ।
जिंदगी में ,इनसे बिछड़ने के लिए,खुद को तैयार कर।।
अपना,अपनों से क्या रिश्ता रहा है,इस जिंदगी में।
इस  पर न सोच,इसे सुलझाने में खुद को तबाह न कर।।
आज तू हमसफ़र के बग़ैर नया आगाज़ करने निकला है।
अकेलापन,तमाम दर्द भूल,आगे बढ़, नुक्ताचीनी ना कर।।
अब यदि किताब ए जिन्दगी के पन्ने भूत बन मंडरा रहे।
तब भी न रुक, ना डर, इन्हें पढ़ने से इंकार ना कर।।
कारवां जिन्दगी का चलता रहेगा,तेरे रोके ये ना रूकेगा।
जोगी तू  भीतर ये यकीं पैदा कर, रिश्ते मरते नहीं मर
कर।।
Joginder Singh Nov 2024
जिन्दगी भर गुनाह किए ,
फिर भी है चाहत ,
मुझे तेरे दर पर
पनाह मिले।

कर कुछ इनायत
मुझ पर
कुछ इस तरह ,जिंदगी!

अब और न भटकना पड़े,
क़दम दर क़दम मरना न पड़े !
शर्मिंदा हूँ....कहना न पड़े!!
    २१/०४/२००९
Joginder Singh Nov 2024
जीवन युद्ध
है एक सतत संघर्ष,
इसमें उत्कर्ष भी है,
तो अपकर्ष भी।
अनमोल मोती सा
उत्कृष्ट निष्कर्ष भी।

यदि
आप चाहते हैं कि
जीवन युद्ध रहे ज़ारी।
यह तानाशाह के हाथों में
बने न नासूर सी बीमारी।
...
बनना होगा
भीतर तक निष्पक्ष।
करना होगा
भीतर बाहर संघर्ष।
आप
काले दिन झेलने की
करें प्राण, प्रण से तैयारी।
....और हाँ,खुद को
सच केवल सच
कहने, सुनने के लिए
करें तैयार।
जीवन मोह सहर्ष दें त्याग।
२६/०१/२०१०
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