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Sep 2023
जीवन सारा ऐसे बीता
खाली खाली रीता रीता

क्या अपना था जो है खोया
क्या हासिल है जो है पाया
ऐसी थी तृष्णा मन मृग की
न ही जागा न ही सोया
फिरता मारा मारा हारा
मन को जीता तब जग जीता

पंछी था छोड़ा अपना घर
भूल गए थे उड़ना ही पर
तड़पे ढूँढे रैनबसेरा
लौटा वापिस फिर बेड़े पर
बीच समुन्दर प्यासा अंदर
बूँद बूँद शबनम को पीता

पतझड़ के पत्तों का मंज़र
आज शिखर पर कल धरती पर
नीरसता और सन्नाटे भर
बिन आशा के सूना बंज़र
सूखा टूटा बिख़रा बिख़रा
चाक ज़िगर के ख़ुद ही सीता

जीवन सारा ऐसे बीता
खाली खाली रीता रीता
Jayantee Khare
Written by
Jayantee Khare  45/F/Pune, India
(45/F/Pune, India)   
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