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कार्य दूत का जो होता है अंगद ने अंजाम दिया ,
अपने स्वामी रामचंद्र के शक्ति का प्रमाण दिया।
कार्य दूत का वही कृष्ण ले दुर्योधन के पास गए,
जैसे कोई अर्णव उदधि खुद प्यासे अन्यास गए।

जब रावण ने अंगद को वानर जैसा उपहास किया,
तब कैसे वानर ने बल से रावण का परिहास किया।
ज्ञानी रावण के विवेक पर दुर्बुद्धि अति भारी थी,
दुर्योधन भी ज्ञान शून्य था सुबुद्धि मति मारी थी।

ऐसा न था श्री कृष्ण की शक्ति अजय का ज्ञान नहीं ,
अभिमानी था मुर्ख नहीं कि हरि से था अंजान नहीं।
कंस कहानी ज्ञात उसे भी मामा ने क्या काम किया,
शिशुओं का हन्ता पापी उसने कैसा दुष्काम किया।

जब पापों का संचय होता धर्म खड़ा होकर रोता था,
मामा कंस का जय होता सत्य पुण्य क्षय खोता था।
कृष्ण पक्ष के कृष्ण रात्रि में कृष्ण अति अँधियारे थे ,
तब विधर्मी कंस संहारक गिरिधर वहीं पधारे थे।

जग के तारण हार श्याम को माता कैसे बचाती थी ,
आँखों में काजल का टीका धर आशीष दिलाती थी।
और कान्हा भी लुकके छिपके माखन दही छुपाते थे ,
मिटटी को मुख में रखकर संपूर्ण ब्रह्मांड दिखाते थे।

कभी गोपी के वस्त्र चुराकर मर्यादा के पाठ पढ़ाए,
पांचाली के वस्त्र बढ़ाकर चीर हरण से उसे बचाए।
इस जग को रचने वाले कभी कहलाये थे माखनचोर,
कभी गोवर्धन पर्वत धारी कभी युद्ध तजते रणछोड़।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
जिस प्रकार अंगद ने रावण के पास जाकर अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र के संधि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था , ठीक वैसे हीं भगवान श्रीकृष्ण भी महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले कौरव कुमार दुर्योधन के पास पांडवों की तरफ से  शांति प्रस्ताव लेकर गए थे। एक दूत के रूप में अंगद और श्रीकृष्ण की भूमिका एक सी हीं प्रतीत होती है । परन्तु वस्तुत:  श्रीकृष्ण और अंगद के व्यक्तित्व में जमीन और आसमान का फर्क है । श्रीराम और अंगद के बीच तो अधिपति और प्रतिनिधि का सम्बन्ध था ।  अंगद तो मर्यादा पुरुषोत्तम  श्रीराम के संदेशवाहक मात्र थे  । परन्तु महाभारत के परिप्रेक्ष्य में श्रीकृष्ण पांडवों के सखा , गुरु , स्वामी ,  पथ प्रदर्शक आदि सबकुछ  थे । किस तरह का व्यक्तित्व दुर्योधन को समझाने हेतु प्रस्तुत हुआ था , इसके लिए कृष्ण के चरित्र और  लीलाओं का वर्णन समीचीन होगा ।  कविता के इस भाग में कृष्ण का अवतरण और बाल सुलभ लीलाओं का वर्णन किया गया है ।  प्रस्तुत है दीर्घ कविता  "दुर्योधन कब मिट पाया" का चतुर्थ  भाग।
उसके दु:साहस के समक्ष गन्धर्व यक्ष भी मांगे पानी,
मर्यादा सब धूल धूसरित ऐसा था दम्भी अभिमानी ?
संधि वार्ता के प्रति उत्तर  में कैसा वो सन्देश दिया ?
दे डाल कृष्ण को कारागृह में उसने ये आदेश किया।

प्रभु राम की पत्नी  का  जिसने मनमानी  हरण किया,
उस अज्ञानी साथ राम ने प्रथम शांति का वरण किया।
ज्ञात  उन्हें  था  अभिमानी को  मर्यादा का ज्ञान नहीं,
वध करना था न्याय युक्त बेहतर कोई इससे त्राण नहीं।

फिर भी मर्यादा प्रभु राम ने एक अवसर प्रदान किया,
रण  तो होने को ही था पर अंतिम  एक निदान दिया।
रावण भी दुर्योधन तुल्य हीं निरा मूर्ख था अभिमानी,
पर मर्यादा पुरुष राम थे निज के प्रज्ञा की हीं मानी।

था विदित राम को कि रण में भाग्य मनुज का सोता है,
नर  जो  भी लड़ते कटते है अम्बर शोणित भर रोता है।
इसी हेतु तो प्रभु राम ने अंतिम एक प्रयास किया,
सन्धि में था संशय किंतु किंचित एक कयास किया।

दूत बना के भेजा किस को रावण सम जो बलशाली,
वानर श्रेष्ठ वो अंगद जिसका पिता रहा वानर बालि।
महावानर बालि जिसकी क़दमों में रावण रहता था,
अंगद के पलने में जाने नित क्रीड़ा कर फलता था।

उसी बालि के पुत्र दूत बली अंगद को ये काम दिया,
पैर डिगा ना पाया रावण  क्या अद्भुत पैगाम दिया।
दूत  बली अंगद हो  जिसका सोचो राजा क्या होगा,
पैर दूत का हिलता ना रावण रण में फिर क्या होगा?

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
रामायण में जिक्र आता है कि रावण के साथ युद्ध शुरू होने से पहले प्रभु श्रीराम ने उसके पास अपना दूत भेजा ताकि शांति स्थापित हो सके। प्रभु श्री राम ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि युद्ध विध्वंश हीं लाता है । वो जान रहे थे कि युद्ध में अनगिनत मानवों , वानरों , राक्षसों की जान जाने वाली थी । इसीलिए रावण के क्रूर और अहंकारी प्रवृत्ति के बारे में जानते हुए भी उन्होंने सर्वप्रथम शांति का प्रयास किया क्योंकि युद्ध हमेशा हीं अंतिम पर्याय होता है। शत्रु पक्ष पे मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए अक्सर एक मजबूत व्यक्तित्व को हीं दूत के रूप में भेजा जाता रहा है। प्रभु श्रीराम ने भी ऐसा हीं किया, दूत के रूप में भेजा भी तो किसको बालि के पुत्र अंगद को। ये वो ही बालि था जिसकी काँख में रावण 6 महीने तक रहा।  कहने का तात्पर्य ये है कि शांति का प्रस्ताव लेकर कौन जाता है, ये बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रस्तुत है दीर्घ कविता  "दुर्योधन कब मिट पाया" का तृतीय  भाग।
Angad Anaam Mar 2021
Language : Hindi (India)

Aadha hi jiyaa maine baaki maazi me kaat diya !!
Jispr sawan beete thhe wo darkhat hi maine kaat diya !!
Mai hi usse mnaata hu jab bhi koi jghdaa hota hai !!
Abke nahi mnaaya or kudrat ka likha kaat diya !!

Jiske liye uthaata thaa ussi pr uth gye haath mere !!
Zehen me jaise aaya ye us haath ki nabz ko kaat diya !!

Suna hai tumne khat ko mere sirf jlaana hota hai !!
So abke maine khat bheja or likhkr sbkuch kaat diya !!

Wo ro ro kar mnaa rahi thi Anaam wapas aane ko !!
Mai be-bas hota iss se pehle phone hi maine kaat diya !!
Maazi- Past
Haath Uthaana - Dua Maangna & Maarna

— The End —