क़दम क़दम पर झूठ बोलना कोई अच्छी बात नहीं ! यह ग़लत को सही ठहरा सकता नहीं !! झूठ बोलने के बाद सच को छिपाने के लिए एक और झूठ बोल देना , नहीं हो सकता कतई सही ।
झूठ जब पुरज़ोर असर दिखाता है तो जीता जागता आदमी तक , श्वास परश्वास ले रहा वृक्ष भी हो जाता एक ठूंठ भर, संवेदना जाती ठिठक , यह लगती धीरे-धीरे मरने।
आदमी की आदमियत इसे कभी नहीं पाती भूल उसे क़दम दर क़दम बढ़ने के बावजूद चुभने लगते शूल। शीघ्रातिशीघ्र घटित हो रहे , क्षण क्षण हो रहे , परिवर्तन भीतर तक को , करते रहते ,कमज़ोर। भीतर का बढ़ता शोर भी रणभूमि में संघर्षरत मानव को , चटा देते धूल।
दोस्त, भूल कर भी न बोलो , स्व नियंत्रण खोकर कभी भी झूठ , ताकि कभी अच्छी खासी ज़िंदगी का यह हरा भरा वृक्ष बन न जाए कहीं असमय अकालग्रस्त होकर ठूंठ! जीवन का अमृत कहीं लगने लगे ज़हर की घूट!! झूठा दिखने से बच , ताकि जीवन में जिंदादिली बची रहे, और बचें रहें सब के अपने अपने सच ! २८/०१/२०१५.