Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Oct 2019
समय कब रुका है
बस यह अपने निशान छोड़ता है
कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होता है
अनुकूल की चाहत
प्रतिकूल का तिरस्कार
हमें जीवन में कष्ट का आभास देता है
जिसने मिटा दिया अनुकूल- प्रतिकूल का फासला
उसको फिर नहीं रहता समय से कोई गिला।

समय गांधी, समय ही लिंकन
समय टैगोर, समय ही सेक्स्पीयर
समय ज्ञान, समय ही विज्ञान
समय रंक, समय ही राजा
समय मौन,‌ समय ही आवाज
समय के बिना कहां परवाज।

समय ना किसी के बस में
बस इसके अलग-अलग दौर की
अलग अलग होती है रस्में
समझी जिसने समय की चाल
उसके निशान बनेंगे मिसाल
करो समय की उचित पहचान
बनाओ खुश अपना जहान
वरना हिरोशिमा और नागासाकी
भी तो हैं समय के ही निशान।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
159
     Millie, Fawn, ---, J J and Kanishka
Please log in to view and add comments on poems