समय कब रुका है बस यह अपने निशान छोड़ता है कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होता है अनुकूल की चाहत प्रतिकूल का तिरस्कार हमें जीवन में कष्ट का आभास देता है जिसने मिटा दिया अनुकूल- प्रतिकूल का फासला उसको फिर नहीं रहता समय से कोई गिला।
समय गांधी, समय ही लिंकन समय टैगोर, समय ही सेक्स्पीयर समय ज्ञान, समय ही विज्ञान समय रंक, समय ही राजा समय मौन, समय ही आवाज समय के बिना कहां परवाज।
समय ना किसी के बस में बस इसके अलग-अलग दौर की अलग अलग होती है रस्में समझी जिसने समय की चाल उसके निशान बनेंगे मिसाल करो समय की उचित पहचान बनाओ खुश अपना जहान वरना हिरोशिमा और नागासाकी भी तो हैं समय के ही निशान।