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Feb 2019
अब भी में खुली हवा में साँस लेता हूँ,
और सोख़ लेता हूँ सूरज की गर्म धुप को,
पतंग को मांझे से बांध निकल जाता हूँ.

कुछ अलग नहीं लगता अब,
आस पास
अब तुम्हारा ना होना, तुम्हारा चले जाना.

सोचा था, बहुत मुश्किल होगा,
कैसे तुम्हारे बिना खुद को सुनूंगा
और कैसे खुद को पाउँगा,
तुम्हारे बिना.

पर, अब अंधेरो में मशालें
रात भर जलतीं हैं.
पैमाने अब भी बनते है.

सोचा था, तुम्हारा जाना,
एक वक़्त का अंत होगा,
किसी शुरुआत के बिना,
और मानो किसी के मरजाने जैसा.  

पर, अब भी तो सुबह होती है,
में जागता हूँ, रात होती है तो,
चाँद निकलता है.
राहें तो राहगीरों से भरा है.
मंज़िलों के मुसाफिर,
अब भी थके नहीं है.

तुम्हारा ना होना
अब एक सुख सा है.
हरेक गुजरता पल अब
प्रेरणा है.
Mujen Suraj
Written by
Mujen Suraj  M/India
(M/India)   
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