जब तक था रोज़गार, ग़म भी थे हज़ार, मगर वक़्त ना था ! अब रोजगार नहीं है, करने को कुछ यार नहीं है, मगर वक़्त के सांचे में ढलने को, ये मन तैयार नहीं है ! उम्र ज्यादा कुछ करने नहीं देती, वक़्त का यही तकाज़ा है, रिटायरमेंट कहते है जिसे, सबको देना ये खामियाजा है ! आहिस्ते आहिस्ते में भी उम्मीदों के साये में ढल जायूँगा, जाता सूरज ज्यूँ कहता है कि मैं कल आयूँगा, काट ही जाएगा ये सफर भी राज, खैर, चाहे मुश्किल होगा चलना अबके दोस्तों के बगैर !!